द्वितीय विश्व युद्ध के योद्धा कायमखानी का निधन

द्वितीय विश्व युद्ध के योद्धा कायमखानी का निधन

यह कहानी है छीतर खां कायमखानी जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के योद्धा छीतर खां कायमखानी का मंगलवार को निधन हो गया। राजस्थान की तत्कालीन स्वतंत्र रियासत शाहपुरा में 17 जुलाई 1920 को जन्मे कायमखानी ने मंगलवार को अन्तिम सांस ली। वे 94 वर्ष के थे। उन्होंने 1939 में बिट्रिश सेना में रहते हुए जापान व जर्मनी के मध्य छिड़े युद्ध में अपना पराक्रम दिखाया था। वे विश्व की सबसे बड़ी नील नदी व स्वेज नीर की सुरक्षा टुकड़ी में भी तैनात रहे।

दुश्मनों से लिया था लोहा
द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों का शोषण किस तरह किया। उसकी करूण कहानी भी लिखी। ब्रिटिश सरकार के फूट डालो राज करो की नीति के चलते कायमखानी ने सन् 1938 में अपना नाम व जाति बदल कर बहादुर सिंह सिसोदिया रखकर अजमेर के मेवां स्कूल (वर्तमान में मेयो कॉलेज) में पढ़ाई की। बाद में शाहपुरा रियासत में नौकरी भी की। उन्होंने ब्रिटिश सेना में रहते हुए उत्तर प्रदेश, पं. बंगाल महाराष्ट्र, मद्रास आदि कई राज्यों में सेवाएं दी। 1939 में çब्ा्रटिश सरकार, जापान व जर्मनी के बीच युद्ध छिड़ जाने से लन्दन से भारतीय सेना को बुलाया गया। 1800 सैनिकों के जत्थे में खां ने दुश्मनों से लोहा लिया।

उनके शौर्य प्रदर्शन के कारण उन्हें पाकिस्तान, अरब सागर, बगदाद, सीरिया, लीबिया, फिलीस्तीन भेजा गया। वे विश्व की सबसे बड़ी नील नदी व स्वेज नीर की सुरक्षा टुकड़ी में भी तैनात रहे। 1943 में जापान व 1945 में जर्मनी से ब्रिटिश सेना जीत गई। 1945 के आखिर तक भारत लौटे सैनिकों के लिए çब्ा्रटिश सरकार ने 900 करोड़ रूपए रिलीज्ड मिलिट्री पेंशन के रूप में दी थी। दुर्भाग्य यह रहा कि खां को इस पेंशन का लाभ उन्हें जीते जी नहीं मिल सका। 

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